Chandrayaan 3 Landing Date: सिर्फ चार दिन के भीतर में चाँद पर पहुंचा था अमेरिका, रूस को भी बस चार ही दिन लगे थे लेकिन चंद्रयान 3 यानी भारत को चाँद की सतह पर पहुंचने में लगेंगे 42 दिन। आपको भी यह सोचकर आश्चर्य होगा कि भारत को चाँद पर पहुंचने में आखिर इतना समय क्यों लग रहा है? जबकि अमेरिका,रशिया जैसे देशों ने कई सालों पहले ही चाँद की दूरी महज चार दिनों में ही पूरी कर ली थी। 1969 में अमेरिका ने अपना अपोलो 11 मिशन रवाना किया था। ये पहला मौका था जब इंसान चाँद पर उतरा था। इस मिशन को चाँद पर पहुंचने में 4 दिन 6 घंटे का समय लगा था तो भारत को 42 दिन क्यों लग रहे हैं?
क्यों चंद्रयान 3 को चाँद तक पहुँचने में लगेंगे 42 दिन? | Chandrayaan 3 Landing Date
अब आपको इसके पीछे की वजह बताते हैं। दो चंद्रयान लॉन्च करने के बाद भारत ने अब तीसरा चंद्रयान लॉन्च कर दिया है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के तीसरे चंद्रयान मिशन को लॉन्च किया गया। अगर चाँद पर सॉफ्ट लैन्डिंग में सफलता मिली तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जायेगा। चन्द्रयान 3 अपने लॉन्च के लगभग एक महीने बाद चंद्र कक्षा में पहुंचेगा। इसके लैंडर विक्रम और रोवर के 23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरने की संभावना है।
यानी चंद्रयान 3 को चाँद पर पहुंचने में एक महीने से भी ज्यादा का समय लगेगा। लेकिन क्यों? इसका जवाब रोकेट की डिज़ाइनिंग इस पर खर्च होने वाले ईंधन और चंद्रयान की स्पीड में छिपा है। स्पेस में लंबी दूरी तय करने के लिए यान को ले जा रहे हैं। रॉकेट की तेज स्पीड और सीधे पद की जरूरत होती है। अपोलो 11 की लॉन्चिंग के लिए नासा ने का इस्तेमाल किया था जो सुपर हेवी लिफ्ट लॉन्चर था। ये प्रतिघंटा 39,000 किलोमीटर की यात्रा कर सकता है।
इसके अलावा इसमें 43 टन भार वाहन क्षमता थी। चाँद की 3,84,000 किलोमीटर की दूरी को तय करने के लिए नासा के रॉकेट ने चार दिनों का वक्त लिया था। हालांकि इसमें आर्थिक पहलू भी है। उस दौर में नासा ने 185 मिलियन डॉलर की रकम इस मिशन पर दर्ज की थी। इसके उलट भारत ने इतने ताकतवर रॉकेट का इस्तेमाल नहीं किया और नासा के बजट के अनुरूप बहुत कम बजट यानी लगभग ₹600,00,00,000 में तैयार किया है। शक्तिशाली रॉकेट जीएसएलवी एमके थ्री रॉकेट चंद्रयान थ्री को पृथ्वी की 170 किलोमीटर 36,500 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित करेगा।
चंद्रयान 3 का वजन 3900 किलोग्राम है इसीलिए कक्षा को धीरे धीरे बढ़ाना जरूरी है। इसकी वजह यह है कि पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी जीएसएलवी एमके थ्री की क्षमता चंद्रयान थ्री के वजन की तुलना में से 10 गुना ज्यादा है। ISRO के पास ऐसे मिशन यानी कक्षा को धीरे धीरे बढ़ाने में विशेषज्ञता के साथ साथ अनुभव भी है। मंगल मिशन, चंद्रयान वन और चंद्रयान टू में भी इसका इस्तेमाल किया गया था।
चाँद पर पहुंचने में रॉकेट और ईंधन का बहुत महत्त्व होता है। जितना कम दिनों में चाँद पर पहुंचना चाहते हैं, उतना ज्यादा ईंधन लगता है। भारत ने पिछले दो चंद्रयान मिशन के बाद अब चंद्रयान सी में कई तरह के बदलाव भी किए हैं। चंद्रयान 3 में ऑर्बिटर मौजूद नहीं है क्योंकि चंद्रयान दो का ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की ओर में ठीक से काम कर रहा है। चंद्रयान की जगह लगाया गया है। ये मॉड्यूल नेविगेशन में मदद करेगा। चंद्रयान तरीके को ज़्यादा मजबूत बनाया गया है।
जिसमें कई फॉलबैक, वैकल्पिक सिस्टम और सैन सर का उपयोग किया गया है। चंद्रयान 2 लैंडर की विफलता का कारण बनने वाली सॉफ्टवेर समस्या को ठीक कर लिया गया है। लैंडर में अब पांच मोटरों की जगह चार मोटर है। चंद्रयान सी की जांच के लिए सैंकड़ों परीक्षण भी किए गए हैं।
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