Indian War Drones: भारत के ऐसे खतरनाक ड्रोन जिससे शत्रु राष्ट्र के पसीने छूट जाते है

Krishna
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Indian War Drones: रूस और यूक्रेन जैसे देश अब दुश्मन को निशाना बनाने के लिए स्वार्म ड्रोन (Swarm Drones) यानी ड्रोन्स के जत्थों का इस्तेमाल कर रहे हैं। स्वार्म ड्रोन छोटे उड़ने वाले मानव रहित उपकरण होते हैं जिन्हें यूएवी यानी अनमैन्ड एरियल वीइकल कहा जाता है। ये विमान नुमा भी हो सकते हैं। यह अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं और इन्हें इस्तेमाल करना भी आसान होता है। इनमें ऐसी क्षमता होती है जो पारंपरिक युद्ध शैली को पूरी तरह उलट सकती है। ये सामान और हथियार ले जाने में सक्षम होते हैं।

स्वार्म ड्रोन्स क्या होते है ?

ऐसे ड्रोन हमले जिसमें 10 या 100 या कभी कभी 1000 से अधिक ड्रोन्स होते हैं, एक साथ उड़ान भरते हुए लक्ष्य को निशाना बनाते हैं, उन्हें स्वार्म ड्रोन कहा जाता है। इसमें हर ड्रोन स्वतंत्र रूप से काम करने के साथ साथ समूह के बाकी ड्रोन्स के साथ इस तरह से सामंजस्य बनाता है कि हर पल इंसानी ऑपरेटर के हस्तक्षेप के बिना यह अपने काम को प्रभावी ढंग से अंजाम देते हैं।

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यह सब किस लिए और किसके नियंत्रण में हो रहा है ?

भारत की रक्षा संस्थाएँ तकनीक में हो रहे हैं। के बदलावों से पूरी तरह परिचित हैं। भारत सरकार ने अपनी ड्रोन पॉलिसी को एक स्वतंत्र रूप दिया है। ड्रोन की स्थानीय स्तर पर तैयारी के लिए सरकार ने 2022, 2023 के बजट में ₹120,00,00,000 का प्रावधान किया है और ड्रोन बनाने की क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत ने निजी कंपनियों के साथ भी सहयोग किया है।

भारतीय वायुसेना के लिए स्वार्म ड्रोन तैयार करने वाली एक कंपनी न्यू स्पेस के संस्थापक समीर जोशी कहते हैं कि स्वार्म ड्रोन ही इस युद्ध का भविष्य हैं और भारत भी इसमें भागीदारी की कोशिश कर रहा है। समीर जोशी ने एक एयरशो के दौरान रक्षा ऋण की बात करते हुए बताया था कि साल 2018 में भारत में 50 से 60 स्टार्ट अप्स 1000 ड्रोन ऑर्डर्स के लिए मुकाबला कर रहे थे। अब 2500 ड्रोन ऑर्डर्स के लिए 200 कंपनियां हैं। इसका मतलब यह है कि ड्रोन के इस्तेमाल और उसकी मांग में वृद्धि हुई है। भारत का स्थानीय ड्रोन प्रोग्राम अमेरिकी ड्रोन के इस्तेमाल से शुरू हुआ था।

Indian War Drones

इस ड्रोन की मदद से भारत के डिफेंस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ ने लक्ष्य नाम का ड्रोन तैयार किया है, जो इंसानी निगाह से आगे तक जा सकता था।

इसके बाद डीआरडीओ ने निशांत और गगन जैसे कई शोर ट्रेन जोन्स तैयार किये जिसमें हाइ रेसोल्यूशन थ्री डी त सीने बनाने की क्षमता है। इसी तरह रुस्तम तू खुद ब खुद लैन्डिंग की क्षमता रखता है और यह निगरानी और जासूसी के लिए बेहतरीन रोल है। वैसे भारत ने सबसे अधिक इस्राइल से ड्रोन आयात किए हैं। भारत ने पहली बार इस फाइल से ही 1998 में ड्रोन आयात किया था।

भारत के ड्रोन की क्षमता चाहे वह स्थानीय स्तर पर तैयार हो या आयात किया गया हो, ज्यादातर कम और मध्यम ऊँचाई तक जाने वाले ड्रोन्स तक सीमित है। अधिक उंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता वाले आधुनिक ड्रोन्स के लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता।

रक्षा विशेषज्ञ का क्या कहना है इसपर ?

Indian War Drones

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रिगेडियर रिटायर्ड राहुल भोसले इस बात पर रौशनी डालते हैं कि भारत के पास इस तरह के ड्रोन्स को स्थानीय तौर पर बनाने का कोई विकल्प नहीं है और ना ही उसे बनाने के लिए किसी दूसरे देश के साथ कोई साझेदारी है। वो कहते हैं, जहाँ तक इनकी निगरानी की क्षमताओं का संबंध है, यह ड्रोन अब तक के सबसे बेहतर ड्रोन है। निगरानी के अलावा इसमें लक्ष्य को निशाना बनाने की क्षमता है। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण रहते हैं, लेकिन अगर चीन की क्षमताओं की बात करें तो उसने अपना स्थानीय ड्रोन उत्पादन सिस्टम तैयार कर लिया है।

समीर जोशी कहते हैं, 2000 के दशक की शुरुआत में चीन ने निर्णय लिया था कि जो कुछ उनके पास है वो बहुत अच्छा नहीं है लेकिन जो वह चाहते हैं वो अच्छा और अद्वितीय है। चीन जो चाहता था उसने उस पर काम शुरू कर दिया। पिछले 20 सालों में उन्होंने सबकुछ बदलकर रख दिया। हालांकि युद्ध की स्थिति में इस्तेमाल नहीं होने के कारण चीन के स्थानीय ड्रोन की क्षमता का अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन यह स्पष्ट है कि उसने ड्रोन की एक रेंज तैयार की है और भविष्य पर नजर रखते हुए उन्हें और तैयार कर रहा है।

इसी तरह पाकिस्तान के पास चीन और तुर्की की मदद से मिले ड्रोन्स है। तुर्की से मिले ड्रोन्स कितने प्रभावी है? वो अज़रबेजान, आर्मेनिया और यूक्रेन, रूस जैसे युद्ध में साफ हो गया है। चीन ने सेना के इस्तेमाल के लिए कई तरह के ड्रोन बनाए हैं, लेकिन आर्मी के लिए यह महंगे हो सकते हैं।

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